Sunday, December 11, 2016

संस्कृति को पहचानें



अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने:
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दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !
तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण !
...चार युग - सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग!
चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !
चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धनपीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !
चर वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !
चार आश्रम - ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास !
चार अंतःकरण - मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार !
पञ्च गव्य - गाय का घी , दूध, दही , गोमूत्र एवं गोबर , !
पञ्च देव - गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य !
पंच तत्त्व - प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवं आकाश !
छह दर्शन - वैशेषिक , न्याय, सांख्य, योग , पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा !
सप्त ऋषि - विश्वामित्र , जमदाग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप !
सप्त पूरी - अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ), अवंतिका और द्वारिका पूरी!
आठ योग - यम , नियम, आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समाधी !
आठ लक्ष्मी - आग्घ , विद्या, सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य, भोग , एवं योग लक्ष्मी !
नव दुर्गा - शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा ,कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी एवं सिद्धिदात्री!
दस दिशाएं - पूर्व , पश्चिम, उत्तर , दक्षिण , इशान , नेत्रत्य , वायव्य आग्नेय,आकाश एवं पाताल !
मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य , कच्छप , बराह , नरसिंह , बामन , परशुराम , श्री राम , कृष्ण , बलराम , बुद्ध , एवं कल्कि !
बारह मास - चेत्र , वैशाख , ज्येष्ठ ,अषाड़ , श्रावन , भाद्रपद , अश्विन , कार्तिक, मार्गशीर्ष . पौष , माघ , फागुन !
बारह राशी - मेष , ब्रषभ , मिथुन , कर्क , सिंह , तुला , ब्रश्चिक , धनु , मकर , कुम्भ, एवं कन्या !
बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ , मल्लिकर्जुना , महाकाल , ओमकालेश्वर , बैजनाथ , रामेश्वरम , विश्वनाथ , त्रियम्वाकेश्वर , केदारनाथ , घुष्नेश्वर , भीमाशंकर एवं नागेश्वर !
पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा, द्वतीय , तृतीय , चतुर्थी , पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , एकादशी , द्वादशी , त्रयोदशी , चतुर्दशी , पूर्णिमा , अमावश्या !
स्म्रतियां - मनु , विष्णु, अत्री , हारीत , याज्ञवल्क्य , उशना , अंगीरा , यम , आपस्तम्ब , सर्वत , कात्यायन , ब्रहस्पति , पराशर , व्यास , शांख्य , लिखित , दक्ष , शातातप , वशिष्ठ !

Tuesday, February 9, 2016

देश का विकास


कैसे विकास हो उस देश का.........
जहां डेढ लाख सैलरी हर महीना पाने वाले सांसदो की सैलरी इनकम टैक्स फ्री है और 24 घंटे मौत की छांव मे रहने वाले सिपाही को बीस हजार सैलरी पर भी टैक्स देना पडता है....
सांसदो को परिवार के साथ रहते हुए भी हर साल पचास हजार फोन कॉल फ्री और घर से हजारो मील दूर बैठे सैनिक को एक कॉल भी फ्री नही...
एक सांसद को फर्नीचर के लिए 75000 हजार रु,
बार्डर पर सैनिक को ड्यूटी के दौरान बारिश से बचने के लिए टूटी हुई छप्पर...
सांसद को हर साल 34 हवाई टिकट मुफ्त,
सैनिक ड्यूटी जाते हुए भी अपने पैसे से टिकट लेता है 
सांसद को वाहन के लिए 400000rs का ब्याज फ्री लोन और एक सैनिक को घर के लिए लोन भी 12% दर से मिलता है
इन सानिको के कारण ही ये सांसद और पूरा देश चैन से सोता है
ऐसी स्थिती मे देश का विकास कैसे होगा ।।
देश के सभी नागरिको को इस बारे मे सोचने की जरुरत है.....


Thursday, October 29, 2015

जवाब चाहिये



हर साल हम रावण जलाते हैं, बड़ी बड़ी बाते लिखते हैं कि ये दिन बुराई पर सच्चाई की जीत होती है, पुराने समय का तो पता नहीं बस पढ़ा है, लेकिन आज के समय में क्या सच में ऐसा होता बै, क्या किसी ने बुराई को हारते देखा है ? सच सामने जरूर आता है लेकिन तब तक झूठ अपनी जिंदगी के मजे ले चुका होता है और सच थका हारा, कमजोर और बूढ़ा हो चुका होता है........  ऐसा क्यों
हम क्या सिखायें बच्चो को कि सच बोलो और पिसते रहो या झूठ बोलो और जिंदगी के मजे लो...... जवाब चाहिये सबसे







Friday, August 15, 2014

देश का भविष्य

जब ऐसा हाल है देश का तो दिल कैसे न रोये, देश को आज़ाद करवाने वाले शहीदों नें क्या ये सपना देखा था आज़ाद देश का


   
सड़कों पर चूल्हे , नग्न बच्चे, सर्दी गर्मी या बरसात .. इनके लिये एक सामान है, क्या इन बच्चो को स्कूल नसीब होगा???
  
भीख मांगते बच्चे और साथ में उनके माँ बाप...... क्या गर्व करें 
    
मासूम बच्ची ... शब्द नहीं मेरे पास बस आंखे भरी हैं अपने देश की ये हालत देख कर 
           
                                                                                   ट्रेन में भीख की उम्मीद में खड़ी बच्ची , क्या ये इसका कसूर है या अपनी मर्ज़ी, क्यों माँ बाप इस तरह बच्चे पैदा कर के उन से भीख मंगवाते हैं, क्यों इसे धंधा बना लिया गया है.....
    
   ककचरे में खाना ढूढते और खेलते बच्चे..... क्या यही भविष्य है हमारे देश का
   
अमीर लोग दान करने आते हैं ये सोच कर कि उनके पाप कम हों जायेंगे लेकिन इन सब को किसी के पाप पुण्य से कोई मतलब नही, इन्हे तो बस खाना चाहिये
    
तपती धूप में ये अधनंगे बच्चे भीख मांगते हुये..
    
   सब की वाल या तस्वीरो की जगह तिरंगा नज़र आ रहा है, लेकिन मैं नही लगा पाई, कैसे लगाती मन ही नही मान रहा था, देश की आज़ादी की मुझे भी बहुत खुशी है लेकिन देश के हालात देख कर मन चित्कार कर रहा है, जो सपने हमारे देश को आज़ाद करवाने के लिये शहीदों ने देखे, क्या उन में से एक भी पूरा हुआ, क्या यही सपने थे... क्या यही भविष्य है हमारे देश का, सिर्फ नारे लगाने से तो ये सब खत्म नहीं होने वाला,
             लेकिन हर जगह जिंदाबाद के नारे गूंज रहें हैं, देश का भविष्य भीख माँग रहा है

Monday, August 11, 2014

राखी की महत्ता

राखी

सावन मास के अंतिम दिन में मनाए जाने वाला पर्व भुजलियां धार्मिक आस्था व उल्लास के साथ  मनाया जाता है । प्राचीन परम्परा के अनुसार खास तौर पर ग्रामीण अंचलों में सावन माह के दूसरे पखवाड़े में भुजलियां टोकरियों में घरों में बोई जाती हैं। रक्षा बंधन पर्व मनाए जाने के दूसरे दिन बाजे-गाजे के साथ भुजलियां का विसर्जन करने समीपस्थ जलाशयों में जाते हैं। जहां भुजलियां का विसर्जन किया जाता है। इसके उपरांत छोटे अपनों से बड़े लोगों को भुजलियां देकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं। वहीं ग्रामीण अंचलों में आज भी भुजलियां पर्व पर विविध धार्मिक कार्यक्रम आयोजित कर अलग-अलग रस्म रिवाज का पालन किया जाता है।
भाई बहन के अटूट स्नेह और रिश्तों की डोर का पर्व रक्षाबंधन आज धूमधाम के साथ मनाया जाता है । इस त्योहार को लेकर बाजार में जहां राखियों की दुकानें सजीं हैं वहीं त्योहार मनाने लोग अपने घरों की ओर वापस जाते  हैं जिससे बसों, टेनों भीड़ बड जाती  है।
    इस पर्व की महिमा सदियों से चली आ रही है जब रानी कर्मवती ने हुमाउन को राखी भेजी थी ,तब एक मुसलमान ने राखी भाई बनकर अपनी बहिन क लाज बचाई थी ,लेकिन ये सदियों पहले की बात है
आज तो बहिन ,बहु ,बेटी अपने ही घर में सुरक्षित नहीं हैं ,भाई खुद खरीदार लाते हैं बहनों के लिए और बहु की तो हालत मत पूछिये ,उसे जो चाहे अपनी संपत्ति समझ कर उपयोग कर लेता है और वो चुप चाप सब सहन करती है ,क्योकि यही उसकी नियति बन चुकी है अगर वो आवाज़ उठे भी तो सास जो की खुद एक औरत है उसका मूंह बंद कर के उसे कमरे में ठेल देती है
सडको पर भयंकर तरीकों से दिनों दिन बलात्कार बड़ते जा रहे हें और हमारा पड़ा लिखा समाज खड़े होकर उस मासूम लुटी हुई महिला की तस्वीरे खींचता है और फेसबुक पर डालता ,क्या वो अबला किसी की बहन बेटी नहीं जिसका इतना बुरा हाल कर के सड़कों पर  लहुलुहान मरने के लिए फेंक दिया जाता जय और उसकी  तस्वीरे खिंची जाती हैं ,लानत है ऐसे लोगो पर ,समझ नहीं आती ऐसे लोग किस हक से हाथो पर राखी बंधवाते हैं और किस की रक्षा का वचन देते हैं
समाज के हालत दिनों दिन बिगड़ते जा रहे हैं ,लेकिन कुछ दिन रैलियां निकाली जाती है ,फेसबुक पर काला झंडा लगा दिया जाता है और फिर वो ही मस्ती शुरू ,क्या त्यौहार का बहिष्कार नहीं किया जा सकता ,जब तक गुनाह बंद न हों तब तक सब नारियां भी राखी ना बांधे ,वैसे भी जब वो किसी आपत्ति में होती हैं तो कौन सा भाई बचाने आता है ,पविटर त्योहारों का तमाशा बनना बंद होना चाहिए ,मर्दों का गुरुर तभी टूटेगा जब औरत आवाज़ उठाएगी
अगर किसी को मेरे विचार बुरे लगे हों तो माफ़ी चाहती हूँ
रक्षा बंधन की शुभ कामनाएं .........रमा

Tuesday, August 5, 2014

कर्मा





आज भागवत गीता पढ़ते हुये ख्याल आया कि कर्मा चक्र सदैव चलला है, कभी नहीं रूकता फिर हम लोग क्यों आपस में बैर रख कर या किसी दूसरे का बुरा चाह कर अपना कर्मा खराब करें, जिन्होने हमें दुख दिया है या दुख का कारण बने हैं तो उनका कर्मा एक दिन वापस घूम कर उन तक पहुंचना ही है, हम अक्सर किस्मत को दोष देने लगते हैं जब भी हमारे साथ कुछ बुरा होता है और समझ नहीं पाते ये हमारा कर्मा ही लौट कर हम तर पहुंचा है, इसी तरह जिन्होने हमें दुख दिया है वो भी चैन से नहीं सो सकते , उनका कर्मा भी घूम कर उन तक पहुंचेगा ज़रूर , चाहे वो उसे पहचाने या न पहचाने
     हम क्या ले कर आये थे और क्या लेकर जायेंगे, बस कर्मा ही हमारे साथ जायेगा 

Sunday, March 9, 2014

नारी और दिखावा

 
हर रोज़ काम में जुटी महिला ये भूल ही जाती है की कोई उसका दिन भी होगा ,लेकिन क्या वो दिन सच में उसका होता है ,उस दिन सिर्फ एक दिन साल में ३६५ दिनों में से एक दिन वो अपनी मर्ज़ी कर सकती है ,जो चाहे वो कर सकती है ,टांग पर टांग चडा कर चाय का एक क...प पी सकती है ,सो सकती है ,कहीं घुमने जा सकती है......अगर नहीं तो काहे का महिला दिवस ....उसे तो रोज़ के काम पूरे करने हैं ,हाँ उसे बहलाने के लिए पति और बचे फूल दे देंगे और घुमने के नाम पर रात का खाना किसी छोटे मोटे होटल में खिला कर संतुष्ट हो जाते हैं और महिला मूंह खोले देखती रह जाती है
         इसके विपरीत विदेशों में औरतें इस दिन को सच में मनाती हैं ,पार्टियां होती हैं ,हंसी के कहकहों से सारा घर गूंजता है ,उस दिन उसे एहसास दिलाया जाता है की वो घर के लिए उन सब के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं ,औरत अपने अन्दर इस एहसास को ले कर फिर से जी उठती है
        फिर हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं ,क्यों सिर्फ दिखावा ही होता है अधिकतर घरो में ,क्यों उसे वो सम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार है ,कुछ एक घरो को छोड़ कर बाकि सब में दिखावा ही होता है