सड़कों पर चूल्हे , नग्न बच्चे, सर्दी गर्मी या बरसात .. इनके लिये एक सामान है, क्या इन बच्चो को स्कूल नसीब होगा???
ट्रेन में भीख की उम्मीद में खड़ी बच्ची , क्या ये इसका कसूर है या अपनी मर्ज़ी, क्यों माँ बाप इस तरह बच्चे पैदा कर के उन से भीख मंगवाते हैं, क्यों इसे धंधा बना लिया गया है.....
अमीर लोग दान करने आते हैं ये सोच कर कि उनके पाप कम हों जायेंगे लेकिन इन सब को किसी के पाप पुण्य से कोई मतलब नही, इन्हे तो बस खाना चाहिये
सब की वाल या तस्वीरो की जगह तिरंगा नज़र आ रहा है, लेकिन मैं नही लगा पाई, कैसे लगाती मन ही नही मान रहा था, देश की आज़ादी की मुझे भी बहुत खुशी है लेकिन देश के हालात देख कर मन चित्कार कर रहा है, जो सपने हमारे देश को आज़ाद करवाने के लिये शहीदों ने देखे, क्या उन में से एक भी पूरा हुआ, क्या यही सपने थे... क्या यही भविष्य है हमारे देश का, सिर्फ नारे लगाने से तो ये सब खत्म नहीं होने वाला,
लेकिन हर जगह जिंदाबाद के नारे गूंज रहें हैं, देश का भविष्य भीख माँग रहा है
दिल को छूते बहुत मार्मिक चित्र...दुःख होता है आजादी के ६८ वर्ष के बाद भी देश की यह हालत देख कर...
ReplyDeleteआभार कैलाश शर्मा जी
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